Friday, December 11, 2015

किनारे की खोज में




निकला था जिन राहों पर, वह राहें कहाँ खो गये,
जाने अनजाने में ये हम कहाँ आ गये.
किस्मत का खेल है, या शायद है वक़्त का इशारा,
किश्ती बन ढूंढूँ मैं अपने हसरतों का किनारा.
ख्वाहिशों के दल-दल ने है हर तरफ से घेरा,
इस घने अंधेरे में ढूंढ़ूँ मैं अपना सवेरा.
आज जब सारे आरजू उमड़ कर आती हैं,
अपनी ही राहों में मुझे तनहाई का एहसास दिलाती हैं.

कौन सा था वह मोड़ जिसे मैंने छोड़ा,
कौन सी दोराहे पर मैंने ग़लत मोड़ मोड़ा.
काश मिल जाए वह मोड़ तो चल पडूँ सही राह पर,
और पा लूँ चल के खुद को अपनी हसरतों के मंज़िल पर.
पा लूँ वह हर खुशी जिसे मैंने कभी था चाहा,
भुला दूँ वह हर आँसू जिसे मैंने कभी बहाया.

पर आज वक़्त का तक़ाज़ा है की चाहतों को एक नया मोड़ दूँ,
बीती को भुला कर आज इस दोराहे पर सही मोड़ लूँ.
खुशी मिले या आँसू बस हौसला साथ रहे,
चलता रहूं जब तक मंज़िल ना मिल जाए.


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